दिल्ली: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंगलवार को जनगणना से जुड़े राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) की समीक्षा कर इसे और प्रासंगिक बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। अगले साल अप्रैल से सितंबर के बीच होने वाली इस जनगणना पर 8,500 करोड़ रुपये खर्च होने की संभावना है। जनगणना आयोग ने कहा है कि एनपीआर का उद्देश्य देश के प्रत्येक “सामान्य निवासी” का एक व्यापक पहचान डेटाबेस तैयार करना है।
एनपीआर के लिए एक ‘सामान्य निवासी’ वह व्यक्ति है जो कम से कम छह महीने या उससे ज्यादा समय के लिए स्थानीय क्षेत्र में निवास कर रहा है, या वह अगले छह महीने या उससे अधिक समय के लिए निवास करने की मंशा रखता है।
भारत के प्रत्येक ‘सामान्य निवासी’ के लिए एनपीआर में पंजीकरण कराना अनिवार्य है। बता दें कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद पैदा हुए विवाद के बीच पश्चिम बंगाल और केरल ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीअर) पर कार्य रोक दिया है।देश के रजिस्ट्रार जनरल और पदेन जनगणना आयुक्त के तत्वावधान में किए जाने वाले एनपीआर से देश में प्रत्येक ‘सामान्य निवासी’ की पहचान के लिए विशेष डेटाबेस तैयार किया जाना है। इस डेटाबेस में जनसांख्यिकीय और कुछ अन्य विशेष जानकारियां शामिल होंगी।
एनपीआर को लेकर यह पूरी कवायद असम को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में होनी है। जनगणना के चरण में हाउस-लिस्टिंग की जाएगी। पूर्वोत्तर राज्य को इससे बाहर रखा गया है क्योंकि वहां नागरिकों का एक राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) पहले ही बनाया जा चुका है।
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मंगलवार को मीडिया से कहा कि इस साल की शुरुआत में असम में किए गए एनपीआर और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) के बीच कोई संबंध नहीं था और अंतिम सूची से 19 लाख लोगों को बाहर रखा गया था।
लंबा फॉर्म नहीं, मोबाइल एप
उन्होंने कहा कि यह को लंबा फॉर्म या प्रपत्र नहीं होगा। बल्कि एक मोबाइल एप होगी… जो स्व-घोषणा की सुविधा प्रदान करती है। किसी भी दस्तावेज की आवश्यकता नहीं है। कोई प्रमाण आवश्यक नहीं है। किसी बायोमेट्रिक की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि सभी राज्यों ने इसके लिए पहले ही स्वीकृति दे दी है। जावड़ेकर ने कहा कि सभी राज्यों ने इसे पहले ही अधिसूचित भी कर दिया है।
आवश्यक जनसांख्यिकीय विवरण में आपका नाम और आपके माता-पिता का नाम और आपके पति या पत्नी का नाम, साथ ही साथ लिंग, जन्म तिथि, जन्म स्थान, राष्ट्रीयता (घोषित), स्थायी और वर्तमान पता (यदि कोई है तो), वहां रहने या निवास करने की अवधि, व्यवसाय और शैक्षणिक योग्यता जैसी बुनियादी जानकारी शामिल होगी। एनपीआर को स्थानीय (गांव/ उप नगर), उप जिला, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर नागरिकता कानून 1955 व नागरिकता नियम, 2003 के तहत तैयार किया जाएगा। देश के सभी नागरिकों का इसमें पंजीकरण अनिवार्य है।
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में हुई थी सिफारिश
साल 2000 में पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के तहत कारगिल समीक्षा समिति ने नागरिकों और गैर-नागरिकों के अनिवार्य पंजीकरण की सिफारिश की थी। इन सिफारिशों को 2001 में स्वीकार किया गया था और 2003 के नागरिकता (पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना) के लिए नियम पारित किए गए थे।
इससे पहले इसे 2010 और 2015 में आयोजित किया गया था, 1955 नागरिकता अधिनियम में संशोधन के बाद एनपीआर को पहली बार 2004 में यूपीए सरकार में अधिकृत किया गया था। इस संशोधन ने केंद्र को ‘भारत के प्रत्येक नागरिक को अनिवार्य रूप से पंजीकृत करने और राष्ट्रीय पहचान पत्र’ जारी करने का अनुमति और अधिकार दिया।
पायलट प्रोजेक्ट से हुई शुरूआत
साल 2003 से 2009 के बीच इसके लिए चुनिंदा सीमावर्ती क्षेत्रों में एक पायलट प्रोजेक्ट लागू किया गया। अगले दो वर्षों (2009-2011) में एनपीआर तटीय क्षेत्रों में भी चलाया गया। इसका उपयोग मुंबई हमलों के बाद सुरक्षा बढ़ाने के लिए किया गया और लगभग 66 लाख निवासियों को निवासी पहचान पत्र जारी किए गए थे।
तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में 2010 में एनपीआर बनाने की शुरुआत की गई थी। तब 2011 के लिए हुई जनगणना के साथ ही एनपीआर का डाटा इकट्ठा किया गया था, जिसे 2015 में घर घर जाकर अपडेट किया गया था। अपडेट आंकड़ों के डिजिटलीकरण का काम पूरा होने के बाद अब 2021 की जनगणना के साथ (असम को छोड़कर) सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एनपीआर को अपडेट किया जाएगा।
एनपीआर की एक नियमित प्रक्रिया के रूप में व्याख्या की गई है जो आगामी जनगणना को पूरा करने और सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से लाभ पहुंचाने में मददगार साबित होने वाला है। इसका डेटा राज्य सरकारों को भी दिया जाएगा। हालांकि, कई लोग एनपीआर को एक राष्ट्रव्यापी एनआरसी लागू करने के पहले कदम के रूप में भी देखते हैं। एनपीआर, एनआरसी लागू होने की गारंटी नहीं देता, परंतु इसके लिए एक रास्ता प्रशस्त करता है। यही इसके विरोध की असल वजह भी है। यही कारण है कि एनआरसी का विरोध कर रहे बंगाल और केरल जैसे राज्यों ने एनपीआर के काम को आगे बढ़ने से रोक दिया है।